Friday 21 June 2013

आम के आम : गुठलियों के दाम


आम के आम : गुठलियों के दाम

आज रास्ते में उन्होंने,
मुझे रोक के बुलाया,
चाय पिलाई, एक गरमागरम
समोसा खिलाया |
फिर बोले –
अब तो अपनी लाटरी लगी समझो
सोयी हुई किस्मत को जगी समझो
बड़े कमाल का आइडिया बतलाता हूँ,
मैं तो अब केदारनाथ से नीचे बहकर आती,
अलखनंदा के किनारे जाता हूँ |
नीचे जाकर नदी में बहकर आयी,
कारें, बसें.... नदी से निकलवाऊँगा,
अफ़सरों की जेब गरम करके,
अपना काम करवाऊँगा |
कारों और बसों को कटवा कर कबाड़ी को देना है,
और वाहनों में से निकले गहने व सामान को मुझे लेना है |
लाशों का संस्कार कर नाम कमाना है |
टी.वी., अखबारों, समाचारों, सब में छा जाना है |
समाजसेवा का नाम डट कर भुनाना है,
और सरकार से बढ़िया सा ‘प्रशस्तिपत्र’ भी पाना है !
फिर फ्यूचर के लिये –
मुझे समुद्र के बीच में भव्य मन्दिर बनवाना है,
और प्रतीक्षा करनी है,
कि वहाँ
कब जल-प्रलय आना है |
कभी न कभी –
वहाँ जरुर जल त्रासदी आयेगी,
जो मेरी सात पीढ़ियों का फ्यूचर
सीक्योर्ड कर जायेगी |

1 comment:

  1. ऐसी भयंकर प्रलय में भी लोग ऐसा सोचते ही नहीं बल्कि करते भी हैं ... कड़वी सच्चाई को उजागर करती रचना



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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