कड़वी कविताएँ



इन्होंने की बेईमानी है

                        --ए.टी.ज़ाकिर (रचनाकाल: १६-०२-८९)


ये गुल  बेचते हैं, चमन बेचते हैं,
औ ज़रूरत पड़े तो कफ़न बेचते हैं |
ये कुरसी की ख़ातिर अमन बेचते हैं,
मेरा हिन्द – मेरा वतन बेचते हैं |
--तो अपने वतन के लोगों को इक बात बतानी है !
सर से अब गुज़रा पानी है,
इन्होंने की बेईमानी है |

सोने की चिड़िया भारत की अब इतनी पहचान है,
पर्वत से सागर तक भूखा – नंगा हिन्दुस्तान है |
रिश्वत का बाज़ार गर्म, और हाय ! दलाली शान है,
सुनकर गाली सा लगता है, यहाँ सुखी इंसान है |
--तो बात तरक्क़ी की करना एक ग़लतबयानी है !
बात हमको कह्लानी है,
इन्होंने की बेईमानी है |

बरसों से खाते आये हैं, पेट नहीं पर भर पाया,
पहले हिन्दू – मुस्लिम बांटे, फिर सिखों को उकसाया |
हक़ इनके हिस्से में आये, फ़र्ज़ है जनता ने पाया,
इस पर भी कुरसी डोली तो, बेशुमार को मरवाया |
--तो ऐसा लगता है कि होनी ख़तम कहानी है !
कि अब इक आँधी आनी है |
 इन्होंने की बेईमानी है |

जब तक तुम बांटे जाओगे गीता और क़ुरान में,
तब तक बांटेंगे तुमको ये दीन – मज़हब, ईमान में |
कभी लड़ायेंगे तुमको ये नक्सल के मैदान में,
मोहरा कभी बनायेंगे तुमको ये ख़ालिस्तान में |
--तो छोटी सी इक बात मुझे तुमसे मनवानी है !
कि  तुममें एकता आनी है,
तो उनकी कुरसी जानी है,
जिन्होंने की बेईमानी है |

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तरक्क़ी का मंत्र

                  --ए.टी.ज़ाकिर (रचनाकाल: ०९-०९-८८)



प्रयासों और उपलब्धियों की पटरियों पर,
दो स्टेशनों –
सफलता और असफलता
के बीच
चला करती थी कभी,
जीवन की रेलगाड़ी !

परन्तु आज –     
पसीने और मेहनत से चलने वाला,
भाप का इंजन कहीं खो गया है |
हमारे – आपके पतन पर,
मुँह छुपा के कहीं सो गया है |

आज तो –
बिजली की रेल है,
चारों ओर बेईमानी की रेलमपेल है |
इसका इंजन कोयला – पानी नहीं,
मूल्यहीनता की बिजली पचाता है,
और मूल्यहीनता की बिजली से,
सर्वशक्तिमान पैसे का चुम्बक बनाता है |
इसी पैसे का तो सारा खेल है,
बाबूजी ! यही तरक्क़ी की रेल है |

इस रेल में बैठना है ?
तो –
सत्य, नैतिकता, ईमानदारी, मेहनत,
चरित्र और देशप्रेम को भुला दीजिये,
बेकार की दकियानूसी बातें हैं सारी,
इन्हें अँधेरी कोठरी में सुला दीजिये |
आइये ! आइये !
तरक्क़ी की रेलगाड़ी में आइये !
ए.सी, स्लीपर किसी भी क्लास में बैठिये,
बिलकुल मत घबराइये |
ईमानदारी से रिश्वत खाइये,
और नैतिकता से रिश्वत खिलाइये |

बस फिर आज से –
अरे आज से नहीं, अभी से –
हर सफलता आपकी होगी |
आपकी क्या ? आपके बाप की होगी |
संस्कारों और मूल्यों वाले,
असफलताओं की नाली में
पड़े रह जायेंगे,
आप मूल्यहीन हो गये हैं ना ?
तो साहब, अब देखिये अपनी तरक्क़ी !
अब आप चलेंगे नहीं भागेंगे !
और बाकी सारे बेवकूफ़,
अपने जगह खड़े रह जायेंगे |
हमारे चारों ओर की दुनिया,
सिर्फ़ गड़बड़तंत्र है,
और ऊपर जो मैंने बतलाया,
वही तरक्क़ी का मंत्र है |

 


      

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1 comment:

  1. बहुत सुंदर । आपसे आदरणीय भाई साहब डॉ मक्खन मुरादाबादी जी के यहां गोष्ठी में मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था ।
    डॉ मनोज रस्तोगी
    8,जीलाल स्ट्रीट
    मुरादाबाद 244001
    उत्तर प्रदेश, भारत
    मोबाइल फोन नंबर 9456687822

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